Monday, July 28, 2008

आप से आंखें हमारी लड़ गईं

आप से आंखें हमारी लड़ गईं;
दिन हुए छोटे कि रातें बढ़ गईं।

ज़िदगी की ओढ़नी पर प्रेम की;
बूटियां कितनी न जाने कढ़ गईं।

खिल उठी मन की कली मधुमास में;
पत्तियां सूखी हुई सब झड़ गईं।


ज़िंदगी में आप की परछाइयां;
इंद्रधनुषी चित्र कोई जड़ गईं।

अब न आंखों को लगे गीता भली;
ढाई अक्षर प्रेम का क्या पढ़ गईं।

Friday, July 18, 2008

शत्रु का मुख मोड़ना भी जानते हैं

हम अहिंसा के पुजारी हैं मगर अवसर पड़े तो;
शस्त्र लेकर शत्रु का मुख मोड़ना भी जानते हैं।
मन-कलश से प्रेम का पीयुष छलकता है सदा पर;
विष भरी गागर घृणा की फोड़ना भी जानते हैं।

धर्म को माना नहीं है राष्ट्र का आधार हमने;
विश्व को बाँटा सदा ही प्यार का उपहार हमने;
काट कर काँटे घृणा के प्रेम के पाटल उगाये;
भू नहीं पर विश्व के मन पर किया अधिकार हमने।
सिंह हों या श्वान दोनों को दिया है स्नेह अपना;
सर्प के हम दाँत लेकिन तोड़ना भी जानते हैं।

कर न पायेगा कलंकित देश की तस्वीर कोई;
छू नहीं सकता कभी भी द्रौपदी का चीर कोई;
दे न पायेगा पड़ोसी आज धोखा मित्र बन कर;
ले नहीं सकता कभी भी युद्ध से कश्मीर कोई।
चाहते निर्माण करना शांति का इतिहास लेकिन;
वीरता के पृष्ठ नूतन लेकिन जोड़ना भी जानते हैं।

सत्य संकट में पड़ा तो हाथ में हथियार होंगे;
शत्रु सीमा पर बढ़ा तो दृष्टि में अंगार होंगे;
ये न सोचो देश गाँधी का रहेगा मौन फिर भी;
कौन जाने वीर कितने देश पर बलिहार होंगे।
ज़िंदगी हँस कर बिताना है हमारा धर्म पावन;
किंतु मुस्का कर कफ़न ओढ़ना भी जानते हैं।

हम अहिंसा के पुजारी हैं मगर अवसर पड़े तो;
शस्त्र लेकर शत्रु का मुख मोड़ना भी जानते हैं।

Thursday, July 17, 2008

शाम नहीं ठहरी

फिसली सुर्ख सुबह मुट्ठी से,रुकी न दोपहरी;
लाख मनाया पर निर्मोही शाम नहीं ठहरी ।

सिमट गयी सांसों में लाखों सूरज की गरमी;
चुभने लगी बदन में रजनीगंधा की नरमी;
दिन बीता उथला-उथला पर रात हुई गहरी।
फिसली सुर्ख सुबह मुट्ठी से, रुकी न दोपहरी।

यादें जागी-जागी सी, आँखें खोई-खोई;
टूटे सपनों का काजल कब तक आँजे कोई;
कुछ तो गीत हुए गूँगे कुछ प्रीत हुई बहरी।
फिसली सुर्ख सुबह मुट्ठी से, रुकी न दोपहरी।

Saturday, July 12, 2008

मन की बात

फूल अपने हृदय का खिल जाए;
चाक दामन भी हो तो सिल जाए;
और कुछ चाहिए न फिर मुझको;
स्नेह यदि साथियों का मिल जाए।

आरज़ू ये नहीं कि छा जाएं;
चाहते बस यही कि भा जाएं;
ज़िंदगी हो गई सफल समझो;
काम गर हम किसी के आ जाएं।

तुम कहीं और हम कहीं होंगे;
किंतु दिल से सदा यहीं होंगे;
आज बस एक नेक वादा हो;
आप हमसे खफ़ा नहीं होंगे।

प्रश्न कुछ मन में अनकहे होंगे;
दर्द चुपचाप बस सहे होंगे;
आपका प्यार पा न पाए तो;
दोष मेरे बहुत रहे होंगे।

-हेमंत स्नेही