जिनकी आँखों में नहीं लाज-शरम का नीर,
वे ही बैठे लिख रहे भारत की तक़दीर.
हर दिन भ्रष्टाचार का बढ़ता जाता जाल,
क्या होगा इस देश का उठता बड़ा सवाल.
भाषण पर भाषण करैं नहीं जिन्हें कुछ ज्ञात,
कारटून पर कर रहे कारटून ही बात.
खुद को ज्ञानी मान कर पीटैं सबकी भद्द,
कारटून को कर दिया कारटून ने रद्द.
कलियुग की महिमा कहैं या फिर बस तकदीर,
मेहनतकश भूखे फिरैं ठलुए खावें खीर. -हेमंत 'स्नेही'
कविता के अनुर्वर प्रदेश की ज़रख़ेज़ ज़मीन
5 years ago