ज़िन्दगी यों गुज़रनी चाहिए.
आदमीयत निखरनी चाहिए.
जो परेशां करे किसी को भी,
बात ऐसी न करनी चाहिए.
लोग हमको न बेवफा कह दें ,
सोच कर रूह डरनी चाहिए।
दर्द दिल में रहें दफ़न कितने,
मुस्कराहट बिखरनी चाहिए.
काश, कुछ काम वो करें जिससे,
कोई किस्मत संवरनी चाहिए.
ठेस गर आपको लगे कोई,
आँख मेरी भी भरनी चाहिए.
हो न जज़्बा अगर निभाने का,
दोस्ती ही न करनी चाहिए।
-हेमन्त 'स्नेही'
*
कविता के अनुर्वर प्रदेश की ज़रख़ेज़ ज़मीन
5 years ago