सुबह गुज़रती और शाम कट जाती है,
मगर हमेशा याद आपकी आती है।
अख़बारों के साथ सुबह दस्तक कोई,
हर दिन मेरा दरवाज़ा खटकाती है।
ख़बरों के ही बीच झरोखे से अक्सर,
कोई शक्ल उभर कर कुछ मुस्काती है।
किसी पृष्ठ पर कहीं चुटीली सी फब्ती,
किसी कलम की कारीगरी दिखाती है।
हर दिन कुछ पन्ने मोहक बन जाते हैं,
मित्रों की प्रतिभा जब रंग जमाती है।
जिनको अक्सर याद किया करते हैं हम,
क्या उनको भी याद हमारी आती है !
-हेमन्त 'स्नेही'
*
Sunday, February 8, 2009
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6 comments:
वो शख्स सुना है अब नजर नहीं आता
हर जगह कहती है इधर नहीं आता
क्यों ढूंढते रहे इस जगह, उस जगह
अहसास से पूछो वो किधर नहीं आता
बेशक। ... और बेहद याद आती है।
kyo nahi sir, apki yaad hamesha saath hai, we all miss you, umeed karte hain blog par ye silsila aap yun hi waqt nikal kar jaari rakhenge.
all the very best
वो शख्स सुना है अब नजर नहीं आता
हर जगह कहती है इधर नहीं आता
क्यों तलाशा उसे इस जगह, उस जगह
दिल से पूछो कि वो किधर नहीं आता
haan sir, hum sab bhi aapko yaad karte hain.
बहुत बढिया रचना है।
जिनको अक्सर याद किया करते हैं हम,
क्या उनको भी याद हमारी आती है !
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