Thursday, August 20, 2009

कद्र कीजिए नातों की ( ग़ज़ल )

कद्र कीजिए नातों की,
दिल से दिल की बातों की।

अक्सर बहुत रुलाती हैं,
यादें कुछ आघातों की।

सूरज वो जो धो डाले,
सारी स्याही रातों की।

क्या-क्या रंग दिखाती हैं,
चन्द लकीरें हाथों की।

देखे ऐसे लोग बहुत,
खाते जो बस बातों की।


पढ़ो इबारत फुरसत में,
अपने दिल के खातों की।


किस्मत याद दिला देती,
सब को ही औकातों की।

खाली हाथ, मगर दिल में,
दौलत हो जज़्बातों की।


-हेमन्त 'स्नेही'
***


10 comments:

ओम आर्य said...

बहुत बहुत बहुत ही खुबसूरत भाव है .......बधाई

"अर्श" said...

बहोत ही खुबसूरत भाव का सामंजस्य है बहुत बहुत बधाई साहिब...


अर्श

अनुराग अन्वेषी said...

काश कि आपकी यह ग़ज़ल नकली लोग पढ़ पाते। दुष्यंत का शेर याद आ गया ( हो सकता है कि शब्द इधर उधर हो गए हों)
दिल की बात कह तो सारा दर्द मत उढ़ेल
अब लोग पूछते हैं ग़ज़ल है कि मर्सिया

वाकई, बेहद खूबसूरती से नकली चेहरों को सामने रखती है यह रचना। कैसे जो अपने मतलब साधने के लिए बातों में मिठास घोलते हैं, भले रिश्तों में कड़वाहट भरी हो। हमारी नासमझ आंखें ऐसे शातिर लोगों को नहीं पहचान पातीं, यह दोष तो हमारा ही है। :-(

rajni said...

आपने इस गज़ल में बहुत गहरी बात कह दी। दिल से आई और दिल को छू गईं आपकी बातें। नसीहत भी मिली कि वक्त चाहे अच्छा हो या बुरा, रिश्तों को हमेशा संभाल कर रखना चाहिए।

नमिता जोशी said...

बहुत ही खुबसूरत

poonam pandey said...

her mod per aise loge mil jate hai jo mukhota lagaker ghoomte hain....aise logo ko pahchanne ki zarurat hai...

नीरेंद्र नागर said...

शानदार। आसान शब्दों में काफी बड़ी बातें। जगजीत सिंह की गाई ग़ज़ल (शायर का नाम याद नहीं)का एक शे'र याद आ गया - गाहे-गाहे इसे पढ़ा कीजे, दिल से बेहतर कोई किताब नहीं. उम्मीद है, आगे भी ऐसी रचनाएं पढ़ने को मिलती रहेंगी।

Neetu Singh said...

सर,
बहुत सही लि‍खा है आपने,उम्‍मीद है कि‍ यह लाइने बहुत सारे लोगों को सोचने पर मजबूर कर देंगी....

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

किस्मत याद दिला देती,
सब को ही औकातों की।

खाली हाथ, मगर दिल में,
दौलत हो जज़्बातों की।

Hemant ji,
apane is gajal men to bahut hee oonchee aur pate kee bat kah dii...vah bhee saral shabdon men.

HemantKumar

poonam bisht negi said...

duniya ko bewakoof banate hue hum khud se hi dhoka kar rahe hote hain... bahut din baad apka likha padhne ko mila hai... likhte rahiye