सभी दलों का देखिए हाल हुआ बेहाल,
कहीं लूट की छूट तो मचता कहीं बवाल।
तंत्र बदलने के लिए ले तो लें संकल्प,
पर बदकिस्मत देश को दिखता नहीं विकल्प।
आदर्शों-सिद्धांतों की करते जो बात,
व्यक्ति-वन्दना में जुटे जोड़े दोनों हाथ।
युवा फ़ौज आगे बढ़े इसमें सब की शान,
मगर बुज़ुर्गों को सदा मिले मान-सम्मान।
तूफानों के बीच हो कैसे बेड़ा पार,
अगर बोझ लगने लगे नौका का ही भार।
-हेमन्त 'स्नेही'
2 comments:
आपकी यह प्रस्तुति कल चर्चा मंच पर है
धन्यवाद
सार्थक प्रस्तुति...
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