Wednesday, December 31, 2008

वर्ष, महीने और दिन

वर्ष, महीने और दिन,
सदियाँ और पल-छिन,
आते हैं और जाते हैं,
बहुत कुछ हम पाते हैं,

लेकिन, सब कुछ है बेकार,
न मिले यदि अपनों का प्यार।
सह सकते हैं हम हर अभाव,
बस, न मिले किसी सम्बन्ध के टूटने का घाव।

-हेमन्त 'स्नेही'
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2 comments:

अनुराग अन्वेषी said...

किसी रिश्ते के बिखरने का घाव सबसे ज्यादा तकलीफ देता है।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सही लिखा है।जब तक अपनों का प्यार न हो सब बेकार ही लगता है।लेकिन आज कल के जमाने मे सभी रिश्ते मतलब के हो गए हैं।