ज़िन्दगी यों गुज़रनी चाहिए.
आदमीयत निखरनी चाहिए.
जो परेशां करे किसी को भी,
बात ऐसी न करनी चाहिए.
लोग हमको न बेवफा कह दें ,
सोच कर रूह डरनी चाहिए।
दर्द दिल में रहें दफ़न कितने,
मुस्कराहट बिखरनी चाहिए.
काश, कुछ काम वो करें जिससे,
कोई किस्मत संवरनी चाहिए.
ठेस गर आपको लगे कोई,
आँख मेरी भी भरनी चाहिए.
हो न जज़्बा अगर निभाने का,
दोस्ती ही न करनी चाहिए।
-हेमन्त 'स्नेही'
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7 comments:
बहुत बढिया रचना है बधाई स्वीकारें।
एक शेर मेरी ओर से भी जोड लें :
बहुत हो गई ज़लालत नेताओं की
अब तो जनता को अखरनी चाहिए.
अच्छी शिक्षा देती रचना.....बहुत सुंदर प्रस्तुतीकरण।
ग़ज़ल अच्छी और प्यारी लगी।
Bahut sundar ghazal.
yeh lajwaab hai sir, great thought expressed.
हो न जज़्बा अगर निभाने का,
दोस्ती ही न करनी चाहिए.
sir, kaash her koe aise hi soche...magar kitne log aise hai jo zindagi ko is tarah se jeete hai....yaha to her koe apni hi dhun mein deewane hai...
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