बंजारे हैं जाना होगा,
जाने फिर कब आना होगा।
बस उतनी ही देर रुकेंगे,
जितना पानी-दाना होगा।
शहर बड़ा पर दिल छोटे हैं,
जाने कहाँ ठिकाना होगा।
चलो किया उसने जो चाहे,
हमको मगर निभाना होगा।
जिसने पथ में कांटे बोए,
वो जाना-पहचाना होगा।
कौन भला चुप रहने देगा,
कुछ तो रोना-गाना होगा।
रोने वाला पागल ठहरे,
हँसे तो वो दीवाना होगा।
दिल में दर्द भरा हो कितना,
होठों को मुस्काना होगा।
मौन रहो तो लोग कहेंगे,
कोई राज़ छिपाना होगा।
प्रियतम को देने की खातिर,
कुछ तो यहाँ कमाना होगा।
कुछ की तो मज़बूरी होगी,
कुछ का मगर बहाना होगा।
शमा जलेगी महफ़िल में पर,
कुरबां तो परवाना होगा।
आज जहाँ है धूम हमारी,
कल अपना अफसाना होगा।
-हेमन्त 'स्नेही'
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6 comments:
हेमन्त जी, बहुत सुन्दर गीत है। बहुत बहुत बधाई।
मेरी नजर से चूक गई थी यह पोस्ट। आज नजर पड़ी। नजर पड़ी तो पढ़ी और जब पढ़ी तो मन अंटका रह गया इसी में। :-)
बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल!
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ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, कोहरे में भोर हुई!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", मिलत, खिलत, लजियात ... ... .
संपादक : सरस पायस
Apka blog to bahut sundar hai..achhi-achhi rachnayen bhi.
Kabhi "Pakhi ki duniya" men bhi ayen.
lajwaab hai yeh rachna....
wah wah wah wah
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