Saturday, January 1, 2011

लोगे तुम जग जीत ( दोहे )


लक्ष्य अगर स्पष्ट हो, कुछ करने की चाह,
हर बाधा को चीर कर बन जाती है राह।

मन में दृढ़ संकल्प हो, अपने पर विश्वास,
मंजिल चल कर खुद-ब-खुद आ जाती है पास।

धन, वैभव या ज्ञान का करें न जो अभिमान,
उनको ही मिलता सदा स्नेह और सम्मान।

अधरों पर मृदुभाष हो, मन में निर्मल प्रीत,
बिना किसी हथियार के लोगे तुम जग जीत।

लगता रेगिस्तान सा यह दुनिया का चित्र,
मानसरोवर सा लगे मिले जो सच्चा मित्र.


-हेमन्त 'स्नेही'


1 comment:

अनुराग अन्वेषी said...

वाकई अच्छी और प्यारी