Saturday, January 1, 2011

चलो, प्रदूषण से करें मिलजुल कर हम युद्ध

ये दोहे समर्पित हैं मंगलायतन विश्वविद्यालय के इन युवा छात्रों को,
जिन्होंने 'परिवर्तन' नामक एक मंच का गठन कर
पर्यावरण-रक्षा के लिए पहल की है।

औद्योगिक उन्नति बनी आज गले की फाँस,
जहरीली होती हवा मुश्किल लेना सांस।

जिधर देखिये बन रहे पिंजड़ेनुमा मकान,
ढूंढे से मिलते नहीं आँगन औ' दालान


गंगा भी दूषित हुई, हवा न मिलती शुद्ध,
चलो, प्रदूषण से करें मिलजुल कर हम युद्ध

दूध-दही की बात तो लगने लगी अजीब,
पीने का पानी कहाँ सबको भला नसीब


विज्ञानी हैरान हैं और खगोली दंग,
मौसम देखो बदल रहा कैसे-कैसे रंग


-हेमन्त 'स्नेही'

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1 comment:

varun said...

This is all because of you sir,
Under Your guidance we are continuously raising our limits.