हुआ है हादसा कितना बड़ा देखो
प्रकृति से खेलना भारी पड़ा देखो
किले जैसे मकाँ कुछ इस तरह बिखरे
कि जैसे फूटता कच्चा घड़ा देखो
बढ़ेगा कब तलक ये आँकड़ा देखो
नियति ने क्या तमाचा है जड़ा देखो
किसी की देह चिथड़ों में मिली लिपटी
किसी के हाथ सोने का कड़ा देखो
पहाड़ों को बहुत ज़ख़्मी किया हमने
हमारी आँख में काँटा गड़ा देखो
-हेमन्त 'स्नेही'
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