Friday, June 21, 2013

प्रकृति से खेलना भारी पड़ा देखो

हुआ है हादसा कितना बड़ा देखो
प्रकृति से खेलना भारी पड़ा देखो


किले जैसे मकाँ कुछ इस तरह बिखरे
कि जैसे फूटता कच्चा घड़ा देखो

 
न जाने काल-कलवित हो गये कितने
बढ़ेगा कब तलक ये आँकड़ा  देखो
  
 
बहुत पर्यावरण से छेड़खानी क़ी 
नियति ने क्या तमाचा है जड़ा देखो
 

किसी की देह चिथड़ों में मिली लिपटी 
किसी के हाथ सोने का कड़ा देखो 


पहाड़ों को बहुत ज़ख़्मी किया हमने 
हमारी आँख में काँटा गड़ा देखो 


-हेमन्त 'स्नेही'

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