हम अहिंसा के पुजारी हैं मगर अवसर पड़े तो;
शस्त्र लेकर शत्रु का मुख मोड़ना भी जानते हैं।
मन-कलश से प्रेम का पीयुष छलकता है सदा पर;
विष भरी गागर घृणा की फोड़ना भी जानते हैं।
धर्म को माना नहीं है राष्ट्र का आधार हमने;
विश्व को बाँटा सदा ही प्यार का उपहार हमने;
काट कर काँटे घृणा के प्रेम के पाटल उगाये;
भू नहीं पर विश्व के मन पर किया अधिकार हमने।
सिंह हों या श्वान दोनों को दिया है स्नेह अपना;
सर्प के हम दाँत लेकिन तोड़ना भी जानते हैं।
कर न पायेगा कलंकित देश की तस्वीर कोई;
छू नहीं सकता कभी भी द्रौपदी का चीर कोई;
दे न पायेगा पड़ोसी आज धोखा मित्र बन कर;
ले नहीं सकता कभी भी युद्ध से कश्मीर कोई।
चाहते निर्माण करना शांति का इतिहास लेकिन;
वीरता के पृष्ठ नूतन लेकिन जोड़ना भी जानते हैं।
सत्य संकट में पड़ा तो हाथ में हथियार होंगे;
शत्रु सीमा पर बढ़ा तो दृष्टि में अंगार होंगे;
ये न सोचो देश गाँधी का रहेगा मौन फिर भी;
कौन जाने वीर कितने देश पर बलिहार होंगे।
ज़िंदगी हँस कर बिताना है हमारा धर्म पावन;
किंतु मुस्का कर कफ़न ओढ़ना भी जानते हैं।
हम अहिंसा के पुजारी हैं मगर अवसर पड़े तो;
शस्त्र लेकर शत्रु का मुख मोड़ना भी जानते हैं।
Friday, July 18, 2008
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