Monday, July 28, 2008

आप से आंखें हमारी लड़ गईं

आप से आंखें हमारी लड़ गईं;
दिन हुए छोटे कि रातें बढ़ गईं।

ज़िदगी की ओढ़नी पर प्रेम की;
बूटियां कितनी न जाने कढ़ गईं।

खिल उठी मन की कली मधुमास में;
पत्तियां सूखी हुई सब झड़ गईं।


ज़िंदगी में आप की परछाइयां;
इंद्रधनुषी चित्र कोई जड़ गईं।

अब न आंखों को लगे गीता भली;
ढाई अक्षर प्रेम का क्या पढ़ गईं।

3 comments:

vipinkizindagi said...

अब न आंखों को लगे गीता भली;
ढाई अक्षर प्रेम का क्या पढ़ गईं।

achcha likha hai

Udan Tashtari said...

बहुत बढिया. बहुत बधाई.

Neetu Singh said...

very nice song sir