Sunday, December 8, 2013

नाकारा साबित हुईं राजनीति कि चाल

नाकारा साबित हुईं राजनीति कि चाल,
आम आदमी पार्टी ने वो किया कमाल।

वोटर नेता से कहे - 'अब तो जाओ चेत,
लूट-दलाली छोड़ दो समझो कुछ संकेत'।

मोदी कि बाँछें  खिलीं  चेहरा हुआ गुलाल,
राहुल का मुखड़ा मगर लाज-शरम से लाल।

कमल खिला, झाड़ू लगी, जीत मिली संयुक्त,
देखो, दिल्ली हो गयी  अब पंजे से मुक्त।

हर्षवर्धन हर्षित हुए  खिले केजरीवाल,
पर फूटी किस्मत लिए शीला करें मलाल।

-हेमन्त 'स्नेही'

Saturday, November 16, 2013

भारत-रत्न सचिन को सलाम

 
बदल दिया तुमने सचिन क्रिकेट का परिवेश,
याद करेगी तुम्हें सदा यह दुनिया, यह देश।

कोई बॉलर विश्व का तुम्हें न पाया जीत,
शेन वार्न तो स्वप्न में भी रहते भयभीत।

चाहे तुमने कह दिया क्रिकेट पिच को बाय,
लेकिन अब होगा शुरू एक नया अध्याय।

दिया बहुत कुछ देश को, पाया अनुपम प्यार,
करने होंगे अब तुम्हें कई सचिन तैयार।
 
आशाएं पूरी हुईं, हुए सार्थक यत्न,
माना सारे विश्व ने तुमको भारत-रत्न।
 
-हेमन्त 'स्नेही'

Sunday, October 20, 2013

सचिन तुम्हारे नाम

सूरज बिन जैसे दिवस, चाँद बिना ज्यों रात,
सचिन बिना यूं ही क्रिकेट, भीगे से जज़्बात।
...
कैसे अभिनन्दन करें , कैसे दें सम्मान,
माना जिसको विश्व ने क्रिकेट का भगवान।

कीर्तिमान सारे लिखे सचिन तुम्हारे नाम,
पूरी दुनिया कर रही तुमको आज सलाम।

बना दिया तुमने हमें दुनिया का सिरमौर,
काश, हमारे देश को सचिन मिलें कुछ और।

शायद सच मानें नहीं अपनी ही सन्तान,
हमने देखा खेलते क्रिकेट का भगवान।

लालू जी को जेल

राज कहो क़ानून का या किस्मत का खेल,
चारा खाने के लिए लालू जी को जेल।

चारा-चारा कर रहे घर-बाहर सब लोग,
लालू बे-चारा हुए सब करनी का भोग।
...
कहती होंगी राबड़ी 'लालू तुम बेजोड़,
चारा ही खाते रहे घर में रबड़ी छोड़'।

'देख रहे क़ानून के कितने लम्बे हाथ,
क्यों बे-चारा हो गए चारा खा कर नाथ।'

Friday, June 21, 2013

प्रकृति से खेलना भारी पड़ा देखो

हुआ है हादसा कितना बड़ा देखो
प्रकृति से खेलना भारी पड़ा देखो


किले जैसे मकाँ कुछ इस तरह बिखरे
कि जैसे फूटता कच्चा घड़ा देखो

 
न जाने काल-कलवित हो गये कितने
बढ़ेगा कब तलक ये आँकड़ा  देखो
  
 
बहुत पर्यावरण से छेड़खानी क़ी 
नियति ने क्या तमाचा है जड़ा देखो
 

किसी की देह चिथड़ों में मिली लिपटी 
किसी के हाथ सोने का कड़ा देखो 


पहाड़ों को बहुत ज़ख़्मी किया हमने 
हमारी आँख में काँटा गड़ा देखो 


-हेमन्त 'स्नेही'

Tuesday, June 11, 2013

दिखता नहीं विकल्प

सभी दलों का देखिए हाल हुआ बेहाल,
कहीं लूट की छूट तो मचता कहीं बवाल।

तंत्र बदलने के लिए ले तो लें संकल्प,
पर बदकिस्मत देश को दिखता नहीं विकल्प।

आदर्शों-सिद्धांतों की करते जो बात,
व्यक्ति-वन्दना में जुटे जोड़े दोनों हाथ।

युवा फ़ौज आगे बढ़े इसमें सब की शान,
मगर बुज़ुर्गों को सदा मिले मान-सम्मान।

तूफानों के बीच हो कैसे बेड़ा पार,
अगर बोझ लगने लगे नौका का ही भार।

-हेमन्त 'स्नेही'

Thursday, January 3, 2013

नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन

भीगी धरती, रो रहा गगन,  हैं नम आँखें, टूटे से मन,

फिर भी आशा के पुष्पों से नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन।

अक्षुण्ण सबका सम्मान रहे,

निज मर्यादा का ध्यान रहे,

हों दानव-देव कहीं भी पर,

धरती पर बस इंसान रहे।

फिर कभी किसी भी बाला का हम सुनें न सिसकी या क्रंदन,

नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन, नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन।

सत्ता के कान हुए बहरे,

निद्रा में लीन रहे पहरे,

मानव देखो दानव बन कर

दे गया ज़ख्म कितने गहरे!

आखिर कब तक यह सहन करें, संयम के टूट रहे बंधन,

नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन, नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन।

आँगन में बिलख रहा बचपन,

सड़कों पर लुटता नव यौवन,

बर्बरता का प्रतिबिम्ब बने

वो रक्त सने निर्वस्त्र बदन.

तपते-झुलसे हर तन-मन पर तुम रख देना थोड़ा चन्दन,

नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन, नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन।

-हेमन्त 'स्नेही'

Saturday, June 9, 2012

ठलुए खावें खीर

जिनकी आँखों में नहीं लाज-शरम का नीर,
वे ही बैठे लिख रहे भारत की तक़दीर.

हर दिन भ्रष्टाचार का बढ़ता जाता जाल,
क्या होगा इस देश का उठता बड़ा सवाल.

भाषण पर भाषण करैं नहीं जिन्हें कुछ ज्ञात,
कारटून पर कर रहे कारटून ही बात.

खुद को ज्ञानी मान कर पीटैं सबकी भद्द,
कारटून को कर दिया कारटून ने रद्द.

कलियुग की महिमा कहैं या फिर बस तकदीर,
मेहनतकश भूखे फिरैं ठलुए  खावें खीर.                                                    -हेमंत 'स्नेही'

Thursday, April 14, 2011

चलो, करें संकल्प (कुंडली)

अन्ना के अभियान को शत-शत करें प्रणाम,
रहे भ्रष्टाचार का कहीं देश में नाम,
कहीं देश में नाम हो रिश्वतखोरों का,
कारागारों में घर हो सारे चोरों का,
चलो, करें संकल्प आज सब मिल कर इतना,
सहें भ्रष्टाचार कष्ट हो चाहे जितना।

-
हेमन्त 'स्नेही'

Saturday, January 1, 2011

चलो, प्रदूषण से करें मिलजुल कर हम युद्ध

ये दोहे समर्पित हैं मंगलायतन विश्वविद्यालय के इन युवा छात्रों को,
जिन्होंने 'परिवर्तन' नामक एक मंच का गठन कर
पर्यावरण-रक्षा के लिए पहल की है।

औद्योगिक उन्नति बनी आज गले की फाँस,
जहरीली होती हवा मुश्किल लेना सांस।

जिधर देखिये बन रहे पिंजड़ेनुमा मकान,
ढूंढे से मिलते नहीं आँगन औ' दालान


गंगा भी दूषित हुई, हवा न मिलती शुद्ध,
चलो, प्रदूषण से करें मिलजुल कर हम युद्ध

दूध-दही की बात तो लगने लगी अजीब,
पीने का पानी कहाँ सबको भला नसीब


विज्ञानी हैरान हैं और खगोली दंग,
मौसम देखो बदल रहा कैसे-कैसे रंग


-हेमन्त 'स्नेही'

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