Saturday, July 12, 2008

मन की बात

फूल अपने हृदय का खिल जाए;
चाक दामन भी हो तो सिल जाए;
और कुछ चाहिए न फिर मुझको;
स्नेह यदि साथियों का मिल जाए।

आरज़ू ये नहीं कि छा जाएं;
चाहते बस यही कि भा जाएं;
ज़िंदगी हो गई सफल समझो;
काम गर हम किसी के आ जाएं।

तुम कहीं और हम कहीं होंगे;
किंतु दिल से सदा यहीं होंगे;
आज बस एक नेक वादा हो;
आप हमसे खफ़ा नहीं होंगे।

प्रश्न कुछ मन में अनकहे होंगे;
दर्द चुपचाप बस सहे होंगे;
आपका प्यार पा न पाए तो;
दोष मेरे बहुत रहे होंगे।

-हेमंत स्नेही

7 comments:

हिन्दीवाणी said...

sir, mubrak ho. Aap bhee ab online walon ke jamat main aa gaye. Isi bahane pata chala ke aap kavi hirday bhee hain. Kavita emotions se bharpoor hai. Lakin ise update bhee karte rahen.

Neetu Singh said...

Sir, Congratulations.......
Very nice and touchy poem, I think ihis is the truth of life.
Great!

Neetu Singh said...

Congratulation sir and welcome to this wotld..........
Ur poem is very touchy. I think this is the single truth of life. Very nice.....

अंगूठा छाप said...

मुंह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन

आवाजों के बाजारों में खामोशी पहचाने कौन...

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!

प्रश्न कुछ मन में अनकहे होंगे;
दर्द चुपचाप बस सहे होंगे;
आपका प्यार पा न पाए तो;
दोष मेरे बहुत रहे होंगे।

Udan Tashtari said...

वाह! बहुत सुन्दर.

हर्षदेव said...

aapke comment ke raste panhuch aapke blog tak. kabhi-kabhi sunta to raha hun, par kavita ki pakad aur gahrai tatha lay ab mujhe aur bhi jyada pravhavit kar rahi hai. meri bahut sari vadhai aur shubhkamnayen.
harsh deo